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इक्कीसवीं सदी : नारी सदी

🎯 पुस्तक का उद्देश्य और महत्व

इस पुस्तक का मूल उद्देश्य है—“21वीं सदी को नारी की सदी” रूप में स्वीकारना और उसे साकार करना। इसमें दिखाया गया है कि कैसे आधुनिक भारतीय समाज में महिलाओं का आत्मविश्लेषण, आत्मनिर्भरता, और नेतृत्व बढ़ रहा है, और क्यों समय की माँग है कि महिलाएँ राष्ट्रीय निर्माण, सामाजिक परिवर्तन और आध्यात्मिक उत्थान की अगुआ बनें। पुस्तक यह स्पष्ट करती है कि यदि नारी के भीतर शिक्षा, सम्मान, आत्मबल और संस्कार जागृत होंगे, तो न केवल घर-संसार, बल्कि देश का भविष्य स्वर्णिम होगा sablog.in+9epustakalay.com+9pustak.org+9

🧭 मुख्य विषय-वस्तु और संरचनात्मक रेखा

1. नारी की उपेक्षा और दबाव

समाज में महिलाओं को अक्सर उपेक्षित, अनदेखा या दबा हुआ पाया जाता है, जिससे उनमें आत्मग्लानि और असंतोष की भावना जन्म लेती है। लेखक इसे “नारी की मानसिक दिवालियापन” कहते हैं और इसका निदान पुस्तक में प्रस्तुत है ।

2. शिक्षा और आत्म-सशक्तिकरण

पुस्तक बताती है कि शिक्षा ही वह कारण है जिससे नारी आत्मनिर्भर बन सकती है। पढ़ाई, लेखन, और आत्म-अभिव्यक्ति के माध्यम से महिलाएँ केवल सामाजिक विकास ही नहीं, बल्कि निजी उत्साह और आत्मनिरीक्षण की ओर अग्रसर होती हैं ।

3. 21वीं सदी—नारी की सदी का दर्शन

लेखक का दृष्टिकोण है कि यदि महिलाओं को अधिकार, जिम्मेदारी और स्वाभिमान मिले, तो यह सदी “नारी की सदी” बन सकती है—जैसे यह सदी नई चेतना और नव निर्माण की धरती बने 

4. साहित्य और आत्मकथा से समाज में असर

महिलाओं के उपन्यास, कविता, आत्मकथा जैसे माध्यमों ने समाज में उनके अनुभवों, संघर्षों और पहचान की अभिव्यक्ति को जन-सम्मुख लाया। लेखक इसे “सशक्त साहित्य” भी कहते हैं, जो बदलाव को प्रभावशाली तरीके से सामने लाता है 

5. भारतीय नारी की विरासत

पुस्तक में वैदिक, पौराणिक समय से लेकर आधुनिक युग तक भारतीय नारी की प्रेरणादायक भूमिका को समझाया गया है—जैसे लोपामुद्रा, अहिल्याबाई, लक्ष्मीबाई आदि—जो ज्ञान, आत्मनिर्भरता, नेतृत्व और प्रेरणा की मिसाल बनीं sahityakunj.net

🌿 पाठकीय लाभ

  • आत्म-आत्मनिपुणता: नारी को स्वयं के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की अनुभूति होती है।

  • साहित्य-आधारित जागरूकता: लेखन और आत्मकथा माध्यम से नारी की भावनाओं, अनुभवों और आदर्शों को पहचानने की प्रेरणा मिलती है।

  • नैतिक नेतृत्व: घर, समाज और राष्ट्र में महिलाएँ नैतिक और व्यावहारिक नेतृत्व कर सकती हैं।

  • राष्ट्र और संस्कृति निर्माण: यदि नारी सशक्त हो, तो घर से शुरू होकर पूरे देश में सकारात्मक बदलाव संभव है।

👤 उपयुक्त पाठक वर्ग

  • युवा नारी, जो आत्मनिर्भरता और नेतृत्व की खोज में है।

  • शिक्षक, समाजकर्मी, जो महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में कार्यरत हैं।

  • अभिभावक, जो भविष्य की पीढ़ी को संस्कारित और समर्थ बनाना चाहते हैं।

  • पढ़े-लिखे वर्ग, जो साहित्य, आत्मकथा और इतिहास आधारित विमर्श में रुचि रखता है।

  • गायत्री परिवार एवं युग निर्माण अभियान से जुड़े लोग, जो सामाजिक परिवर्तन में नारी भूमिका को बढ़ावा देना चाहते हैं।

संक्षिप्त सारांश

पहलूविवरण
पुस्तकइक्कीसवी सदी—नारी सदी
विशेषतामहिलाओं की आत्मबोध, समाज-आधारित साहित्य, नेतृत्व, संस्कृति-निर्माण
उपयोगी क्योंनारी का आत्मसम्मान, सशक्त साहित्य, सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान

📚 “इक्कीसवी सदी—नारी सदी” सिर्फ एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक चेतना-आधारित अभियान है, जो हर महिला को आत्मनिर्भर, आत्मसम्मानशील और राष्ट्र-निर्माण में अग्रसर बनने के लिए प्रेरित करती है। इसे आज ही अपने कार्ट में जोड़ें और 21वीं सदी को महिलाओं की सदी के रूप में संवारने में अपना योगदान दें!




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लेखक : पं श्रीराम शर्मा आचार्य
भाषा : Hindi