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तीर्थ सेवन क्यो और कैसे ?

🎯 पुस्तक का उद्देश्य एवं सारांश

“तीर्थ सेवन – क्यों और कैसे?” एक गहन वेदान्त और व्यवहार प्रेरित ग्रंथ है, जो तीर्थ-यात्रा (पैलग्रीमेज) को केवल धार्मिक कर्म न मानकर, एक आध्यात्मिक और सामाजिक साधना के रूप में प्रस्तुत करता है। लेखक पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य ने इसमें तीर्थ-सेवन के सही दृष्टिकोण, विज्ञान, भावना, और प्रगाढ़ लाभों को सरल भाषा में स्पष्ट किया है। तीर्थ-यात्रा को शौक, पाखंड या सहलक्षणिक क्रिया से ऊपर उठाकर इसे युग-परिवर्तन हेतु चेतना-जागृति और समाज-सशक्तिकरण का उपकरण बताया गया है exoticindiaart.com

🌟 मुख्य विषय-वस्तु

1. तीर्थ-यात्रा सिर्फ घूमना नहीं

लेखक बताते हैं कि जब तीर्थ-सेवन को श्रद्धा, साधना और अपने भीतर की गहरे सतरंगीन चेतना से जोड़ा जाए, तब यह केवल हमारा आध्यात्मिक पोषण नहीं करता, बल्कि सामाजिक सहयोग और नैतिक परिवर्तन की ओर प्रेरित करता है ।

2. हर तीर्थ का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

पुस्तक में व्यापक विवेचन है कि कैसे विभिन्न तीर्थ—चाहे गंगा तट हो या हिमालय, के तपस्वी स्थलों जैसे राम-झूला, विष्णु-आश्रित पथ—inमें विशेष भाव और वातावरण होता है जो मन-मस्तिष्क को ऊर्जावान, शांत और संवेदनशील बनाता है ।

3. हर तीर्थ यात्रा का ‘क्या’ और ‘कैसे?’

यह ग्रंथ सिर्फ ‘क्यों’ नहीं बताता, बल्कि चरणबद्ध तरीके से यह भी समझाता है कि तीर्थ जाने से पहले क्या-ध्यान रखा जाए—जैसे शारीरिक, मानसिक और भावना की तैयारी, समय, दायित्व, सेवा आदेश, स्‍थानीय संस्कृति-राख-प्रवाह—ताकि यात्रा साधना-सम्मिलित बने।

4. हर तीर्थ यात्रा का फल व लाभ

जब श्रद्धा और संयम के साथ तीर्थ-सेवन होता है, तब यात्रा व्यक्ति के मन को निर्मल, आत्मबोध को जागृत, निर्णय क्षमता एवं ऊर्जा को जागृत करती है—यह केवल शोर-शराबे में गुम नहीं होती ।

5. ‘ग्रीन’ तीर्थ-परंपरा

लेखक तीर्थों का पर्यावरणीय पहलू भी उजागर करते हैं—देस-विदेश में जैसे ‘ग्रीन कुंभ’, जहाँ प्रत्येक तीर्थयात्रा से एक पेड़ लगाने की भी परंपरा है। इससे सशक्त भाव-परिवर्तन व प्रकृति-संरक्षण साथ-साथ चलते हैं ।

🌱 पाठक को क्या लाभ होंगे

  • आश्रम-सीमित अनुभव से कहीं व्यापक चेतना – तीर्थ-सेवन केवल तीर्थ पहुंचना नहीं, बल्कि चेतना-शुद्धि का तंत्र होता है।

  • मानसिक स्‍थिरता और ऊर्जा – भक्ति-भाव और प्राकृतिक वातावरण से मनमस्तिष्क को ठहराव मिलता है।

  • आध्यात्मिक निर्णय-क्षमता – सम्‍पेर्श, समाधि व स्वाध्याय से भावनात्मक स्पष्टता मिलती है।

  • समाज-सेवा और नैतिक प्रेरणा – यात्रा के दौरान सेवा एवं त्याग प्रेरणा बनते हैं।

  • पर्यावरणीय जागृति – प्रकृति-संवेदना और वृक्ष-रोपण से सामाजिक जिम्मेदारी बढ़ती है।

👥 यह पुस्तक किनके लिए उपयुक्त है?

  • तीर्थ यात्रा के प्रेमी, जो इसे केवल भ्रमण न समझ कर जीवनबोध की साधना बनाना चाहते हैं

  • धर्मयात्रा में सार्थकता लाना चाहने वाले साधक

  • सामाजिक नेतृत्वकर्ता—जैसे संकट कार्यकर्ता, समाजसेवी, संगठनकर्ता, जो तीर्थ-विकास परियोजनाओं को स्व-प्रेरित करना चाहते हैं

  • युवा, छात्र एवं परिवार, जो तीर्थ-यात्रा को शिक्षा, आत्मनिरीक्षण और सहकर्मी सेवा की दिशा में उपयोग करना चाहते हैं

संक्षिप्त निष्कर्ष

“तीर्थ सेवन – क्यों और कैसे?” ज्ञान और प्रज्ञा का ग्रंथ है जो तीर्थ-यात्रा को आध्यात्मिक साधना, मानसिक स्पष्टता और समाज-विकास का केंद्र बनाता है। यह गुरु-शिष्य की तपोभूमि का मार्गदर्शन मात्र नहीं, बल्कि यात्रा के दौरान भाव-शुद्धि, प्राकृतिक संवेदना, सेवा और चरित्र-संवर्धन की आत्म-शक्ति निर्मित करता है।

📚 यदि आप तीर्थ-यात्रा को केवल भ्रमण न मानकर एक साधना और समाज-सशक्तिकरण का माध्यम बनाना चाहते हैं—तो यह पुस्तक आपके लिए एक सुविचारित, ज्ञान-सम्पन्न साथी साबित होगी। इसे अपनी अलमारी में जरूर शामिल करें!

₹ 150.00 ₹ 150.00 (Tax included)
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लेखक : पं श्रीराम शर्मा आचार्य
भाषा : Hindi