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धर्मचक्र प्रवर्तन एवं लोकमानस का शिक्षण

🪔 पुस्तक का मूल उद्देश्य

इस पुस्तक का केंद्रीय उद्देश्य है—धर्म को केवल कर्मकांड या उपासना के संकुचित दायरे से बाहर निकालकर उसे सामाजिक चेतना और लोक कल्याण का माध्यम बनाना। यह ग्रंथ “धर्मचक्र प्रवर्तन” की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक घटना के संदर्भ में धर्म के पुनर्स्थापन और लोकमानस के पुनर्निर्माण की दिशा में एक ठोस दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के अनुसार धर्म का वास्तविक स्वरूप सत्य की खोज, मानवता की सेवा और जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा में निहित है। यह पुस्तक इन्हीं विचारों को व्यावहारिक धरातल पर समझने और उतारने का माध्यम बनती है।

🧭 पुस्तक की प्रमुख विषयवस्तु

🔹 1. धर्मचक्र प्रवर्तन – बौद्ध दृष्टिकोण से आधुनिक सन्दर्भ तक

बुद्ध के ‘धम्म चक्क पवत्तन सुत्त’ (प्रथम उपदेश) की विवेचना करते हुए यह पुस्तक यह दर्शाती है कि धर्म केवल आत्मकल्याण का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक पुनर्निर्माण का औजार भी है।

बुद्ध ने चार आर्य सत्यों के माध्यम से जीवन के दुःख, उसके कारण और समाधान का मार्ग बताया। यह पुस्तक इन्हीं चार सत्यों और अष्टांग मार्ग को आज के समाज पर लागू करने की प्रेरणा देती है।

🔹 2. लोकमानस का शिक्षण

लोकमानस अर्थात जनसाधारण की सोच, धारणा और व्यवहार। यदि समाज का मन विषाक्त होगा, तो कोई भी सुधार कार्य स्थायी नहीं हो सकता। इस पुस्तक में बताया गया है कि कैसे सतत शिक्षा, जनजागरण, सद्भावना अभियान और लोकसेवा जैसे माध्यमों से लोकमानस को सकारात्मक दिशा दी जा सकती है।

🔹 3. धर्म का वैज्ञानिक और व्यावहारिक स्वरूप

पुस्तक में विशेष बल दिया गया है कि धर्म कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि मानवीय चेतना का वैज्ञानिक विकास है। यह जीवन के हर पक्ष में—व्यक्तिगत अनुशासन से लेकर सामाजिक उत्तरदायित्व तक—मार्गदर्शक बनता है। धर्म का व्यवहारिक पक्ष है—कर्तव्य, संयम, सेवा और करुणा

🔹 4. धर्म का मूल उद्देश्य: चेतना का परिष्कार

यह पुस्तक चेतना के परिष्कार की आवश्यकता को विस्तार से समझाती है। धर्म का कार्य है—मनुष्य के अंतःकरण को इतना सजग और संवेदनशील बनाना कि वह अपने भीतर के दैवी तत्वों को पहचान सके। यह आत्म-परिवर्तन ही समाज के परिवर्तन का आधार है।

🌿 पुस्तक की विशेषताएँ

  • अत्यंत गहन विश्लेषणात्मक लेखन: प्रत्येक विषय को गहराई से और प्रामाणिक संदर्भों के साथ प्रस्तुत किया गया है।

  • व्यावहारिक दृष्टिकोण: पुस्तक केवल विचार नहीं देती, बल्कि उन्हें क्रियान्वित करने की विधियाँ भी प्रस्तुत करती है।

  • समाज सुधार की रणनीतियाँ: धर्म, शिक्षा, परिवार, युवा वर्ग, महिलाओं, ग्रामीण विकास, मीडिया—सभी के लिए मार्गदर्शन।

  • सहज भाषा, गंभीर विषय: कठिन दार्शनिक विषयों को भी सरल भाषा में आमजन के लिए सुलभ बना दिया गया है।

👥 किनके लिए उपयोगी है यह पुस्तक?

  • शिक्षक एवं प्रशिक्षक: जो समाज में नैतिक शिक्षा और मानव मूल्य देना चाहते हैं।

  • युवा वर्ग: जिन्हें अपनी सोच और चरित्र को सकारात्मक दिशा में मोड़ना है।

  • समाजसेवी और संगठक: जो जनजागरण और समाज सुधार में कार्यरत हैं।

  • धर्मप्रेमी एवं साधक: जो धर्म को केवल पूजा-पद्धति नहीं, जीवन जीने की शैली मानते हैं।

  • गायत्री परिवार, विचारक्रांति आंदोलन और मिशन से जुड़े सदस्य: जिनका ध्येय जनचेतना और युग निर्माण है।

📖 पढ़ने से क्या लाभ मिलेगा?

  • धर्म के व्यापक स्वरूप की समझ – धर्म को केवल मंदिर-मस्जिद से बाहर निकालकर व्यावहारिक जीवन में लाना।

  • जनचेतना में बदलाव लाने की दिशा – किस प्रकार समाज को आदर्श मूल्यों की ओर ले जाया जा सकता है।

  • शिक्षा और नैतिकता का समन्वय – शिक्षा के माध्यम से धर्म की चेतना का प्रचार-प्रसार।

  • आत्मिक और सामाजिक उन्नति – स्वयं के भीतर परिवर्तन से लेकर समाज के विकास तक की यात्रा।

🔖 कुछ प्रमुख अध्याय शीर्षक (अनुमानित):

  • धर्म का व्यावहारिक रूप

  • लोकमानस में नैतिकता का स्थान

  • चार आर्य सत्य और आधुनिक समाज

  • धर्म का वैज्ञानिक विवेचन

  • शिक्षकों और संगठकों की भूमिका

  • जनजागरण के माध्यम

  • धर्म और राष्ट्र निर्माण

पुस्तक क्यों खरीदें?

  • समाज, धर्म और शिक्षा—तीनों का समन्वय इस एक पुस्तक में मिलता है।

  • 664 पृष्ठों में गहराई से विश्लेषण, जो शोध और आत्ममंथन दोनों के लिए उपयुक्त है।

  • ₹150 की अत्यंत सुलभ कीमत में बहुमूल्य चिंतन

  • यह पुस्तक केवल पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि जीवन और समाज को बदलने के लिए है।

📚 यदि आप अपने जीवन को समाज के लिए उपयोगी बनाना चाहते हैं, धर्म को नई दृष्टि से देखना चाहते हैं, और लोकचेतना में जागृति लाना चाहते हैं—तो यह पुस्तक आपके लिए एक अनमोल मार्गदर्शक सिद्ध होगी।


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लेखक : पं श्रीराम शर्मा आचार्य
भाषा : Hindi