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संस्कृति-संजीवनी श्रीमद्भागवत एवं गीता

🎯 पुस्तक का उद्देश्य और सारांश

“संस्कृति संजीवनी – श्रीमद्भावत एवं गीता” उस दिव्य संस्कृति के सूक्ष्म सार को जीवंत पाठ के रूप में प्रस्तुत करती है, जिसमें संजीवनी का अर्थ सिर्फ जीवन को पुनर्जीवित करना ही नहीं, बल्कि चरित्र, चेतना और संस्कार को पुनः जीवंत करना है। लेखक ने इसमें दो महान ग्रंथों—श्रीमद्भागवत पुराण और भगवद्गीता—के मध्य गूढ़ तत्वों को उजागर करते हुए बताया है कि आधुनिक जीवन में इनकी उपयोगिता कितनी प्रासंगिक और आवश्यक है।

🌟 मुख्य विषय-वस्तु और प्रेरणास्पद विचार

1. श्रीमद्भागवत का जीवनदर्शन

श्रीमद्भागवत में वर्णित कृष्ण और अन्य देव-पुरुषों के चरित्र आदर्श केवल कथा-हेतु नहीं, बल्कि मानव-चरित्र निर्माण, सेवा-भाव, नैतिकता और युग-परिवर्तन की प्रेरक शिक्षाएँ हैं। विश्व में धर्म और प्रतिभा के प्रसार के भीतर इसके जीवनोपयोगी संदेश छिपे हैं।

2. गीता का सार: कर्म, भक्ति और ज्ञान

गीता जीवन को जागरूकता से संचालित करने की गहराई सिखाती है—कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्ति योग को साधन मानकर। इस पुस्तक में बताया गया है कि कैसे व्यक्ति साधारण जीवन में बिना अलार्म के जागरुक रहकर भी गीता की शिक्षा को व्यवहार में उतार सकता है।

3. संस्कृति की पुनरुत्थान प्रक्रिया

संस्कृति सिर्फ रीति-रिवाज या परंपराओं का नाम नहीं, बल्कि जीवन-चेतना, व्यक्तित्व-गुण और चरित्र-बल का एक संगठित रूप है। लेखक बताते हैं कि यदि इन ग्रंथों के गूढ़ अर्थ को समझा जाए, तो वर्तमान पीढ़ी भी आत्मनियंत्रण, अखंडता और आदर्श जीवन जी सकती है।

4. आध्यात्मिकता और व्यवहार का मिलन

यह पुस्तक धार्मिक घुटन या संकीर्ण मान्यताओं से अलग है, इसमें गीता-शास्त्र को वैज्ञानिक दृष्टिकोण और जीवन-आचरण के व्यावहारिक संदर्भ में समझाया गया है। यह दर्शाती है कि अध्यात्म और वर्त्तमान जीवन में खाई मिटाकर चरित्र-संस्कृति का सशक्त युग निर्माण हो सकता है।

5. चरित्र निर्माण के मॉडल

कृष्ण के निर्णय, अर्जुन का स्वसंघर्ष और फिर उसका आत्मसमर्पण—यह सब प्रतीकात्मक रूप में दिखाया गया है कि किस प्रकार एक व्यक्ति व्यक्तित्व-स्थाइयता, मानसिक जागरुकता और सामाजिक उत्तरदायित्व का मार्ग पार कर सकता है।

🌱 पाठ से मिलने वाले लाभ

  • मानसिक स्थिरता और स्पष्टता
    गीता की शिक्षाओं और भागवद दृष्टांतों के माध्यम से मानसिक अशांति और अव्यवस्थित विचारों से मुक्ति मिलती है।

  • धर्म, सेवा और शक्तिशाली कर्म
    जीवन में आत्मजागरूकता और नैतिकता के साथ कर्म करना संभव होता है।

  • चरित्र और संस्कृति का निर्माण
    शास्त्र-आधारित दृष्टिकोण से व्यक्ति के निजी, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है।

  • आध्यात्मिक चेतना
    अध्यात्म मात्र आस्था नहीं, बल्कि जीवन का सतत जागरूक अनुभव बन जाती है।

  • नेतृत्व और समष्टि जागृति
    जब व्यक्तिगत चरित्र मजबूत होता है, तभी सामाजिक चेतना और राष्ट्र-निर्माण की नींव सशक्त बनती है।

👥 यह पुस्तक किनके लिए उपयुक्त है

  • युवा, विद्यार्थी और विचारक जो आधुनिक संदर्भ में धार्मिक–आध्यात्मिक मूल्य सीखना चाहते हैं

  • शिक्षक, नेता, संगठनकर्ता और प्रेरक वक्ता जो चरित्र-निर्माण को अपनी शिक्षा या सामाजिक गतिविधियों में केंद्र बनाना चाहते हैं

  • साधक और चिंतक जो गीता एवं भागवद दृष्टिकोण को जीवन में आत्मसात करना चाहते हैं

  • परिवारगण और माता–पिता जो नैतिक संस्कृति व परिवर्तन की शिक्षा को घर से शुरू करना चाहते हैं

  • समाज व संस्कृति-निर्माण के कार्यकर्ताओं, जिन्हे पौराणिक ज्ञान व्यवस्था को नए युग की भाषा में प्रयोग करना है

संक्षिप्त विचार

“संस्कृति संजीवनी – श्रीमद्भावत एवं गीता” एक जीवनोपयोगी ग्रंथ है जो आपको धार्मिक मिथकों और आध्यात्मिक शिक्षाओं से जोड़ने की बजाय उन्हें व्यवहारिक चरित्र निर्माण और जीवन शक्ति में परिवर्तित करता है। यदि आप अपने जीवन में धर्म के साथ-साथ जागरूक चेतना, चरित्र की मर्यादा, और सामाजिक उत्तरदायित्व चाहते हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए एक प्रेरक और मूल्यवान साथी साबित होगी। इसे अपनी अध्यात्मिक-ज्ञानयात्रा का एक ठोस आधार बनाएं।

📚 अपने जीवन में धर्म, चेतना और सेवा का संतुलन लाना चाहते हैं तो यह ग्रंथ आपकी यात्रा की उस संजीवनी होगी जो संकल्प, संस्कार और सत्कर्म को जीवंत करती है।

₹ 150.00 ₹ 150.00 Tax Excluded
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ब्रांड: युग निर्माण योजना ट्रस्ट
लेखक : पं श्रीराम शर्मा आचार्य
भाषा : Hindi

 शर्तें और नियम

प्रेषण: २ से ५ व्यावसायिक दिवस