Dharmtatwa Ka Darshan Ewam Marm (Philosophy and essence of Dharmatattva)
🔷 पुस्तक का उद्देश्य
यह ग्रंथ धर्म की सही परिभाषा, उसके व्यवहारिक स्वरूप, तथा आधुनिक युग में उसकी उपादेयता को एक वैज्ञानिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है।
लेखक ने धर्म को केवल पूजन-पद्धति, पंथ या बाह्य आडंबरों तक सीमित न रखकर उसे विचार, भाव, आचरण और विवेक की परिभाषा में समाहित किया है।
इस ग्रंथ का उद्देश्य है – धर्म की गहराई को समझाना और उसे जीवन का दिशा-निर्देशक बनाना।
🧭 मुख्य विषयवस्तु एवं अनुभाग
1. धर्म की मूल परिभाषा
धर्म का अर्थ मात्र पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि वह नैतिक और दार्शनिक अनुशासन है जो व्यक्ति को संयमित करता है।
यह पुस्तक धर्म को “सत्य, प्रेम, करुणा, सेवा और कर्तव्यबोध” के रूप में प्रस्तुत करती है।
2. धर्म बनाम पंथवाद
लेखक ने स्पष्ट किया है कि धर्म कोई विभाजनकारी विचार नहीं, बल्कि समन्वय का स्रोत है।
पंथ (sect) का जन्म समय-परिस्थिति विशेष के अनुसार हुआ, परंतु धर्म चिरंतन है—जो मानवता का सार्वभौमिक सत्य है।
3. धर्म और विज्ञान का संगम
आज धर्म और विज्ञान को एक-दूसरे का विरोधी माना जाता है, जबकि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
पुस्तक यह समझाती है कि धर्म की भावनात्मक और नैतिक शक्ति तथा विज्ञान की तार्किकता और प्रमाणिकता मिलकर ही पूर्ण विकास की ओर ले जाते हैं।
4. धर्म का मनोवैज्ञानिक पहलू
धर्म केवल बाहरी कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्मिक अनुशासन और मानसिक संयम का नाम है।
आत्मनिरीक्षण, तप, विवेक, अनुशासन आदि मानसिक गुणों के विकास से ही धर्म सार्थक होता है।
5. पाप-पुण्य की वास्तविकता
लेखक ने स्पष्ट किया है कि पाप-पुण्य कोई रहस्यमयी अवधारणा नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक ऊर्जा की परिणति है।
हर शुभ विचार, भाव और कर्म पुण्य है; और हर स्वार्थ, ईर्ष्या, घृणा से प्रेरित कर्म पाप।
6. समाज और धर्म
धर्म समाज की रीढ़ है। जब धर्म कमजोर होता है तो समाज में अराजकता, नैतिक पतन और आत्महीनता फैलती है।
पुस्तक में बताया गया है कि न्याय, दया, सत्य, सेवा और समानता जैसे मूल्य समाज में धर्म के कारण ही टिके रहते हैं।
7. धर्मनिरपेक्षता का सही अर्थ
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म-विरोध नहीं, बल्कि सभी धर्मों के प्रति समान आदर और सहिष्णुता है।
लेखक यह समझाते हैं कि भारतीय संस्कृति में धर्मनिरपेक्षता सह-अस्तित्व और सहभावना की भावना से जुड़ी है, न कि केवल राजनीतिक परिभाषाओं से।
8. आज के युग में धर्म का महत्व
वर्तमान समय में जब भौतिकवाद, हिंसा, भ्रष्टाचार और व्यक्तिगत स्वार्थ बढ़ रहा है, तब धर्म की नैतिक शक्ति ही व्यक्ति और समाज को संतुलित कर सकती है।
लेखक यह बताते हैं कि धर्म यदि जीवन में जाग्रत हो जाए, तो वह शांति, प्रगति और सद्भाव का मार्ग बन सकता है।
🌿 पुस्तक की विशेषताएँ
गंभीर विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है
धर्म के विभिन्न पहलुओं पर तुलनात्मक और तार्किक दृष्टिकोण
आधुनिक संदर्भों के साथ क्लासिक भारतीय दृष्टिकोण का समन्वय
व्यक्ति, समाज और राष्ट्र तीनों स्तर पर धर्म की भूमिका का मूल्यांकन
👥 यह पुस्तक किनके लिए उपयोगी है?
विद्यार्थी और शिक्षक, जो धर्म को तार्किक दृष्टि से समझना चाहते हैं
समाजसेवी, जो समाज निर्माण में नैतिकता को आधार बनाना चाहते हैं
धार्मिक साधक, जो केवल पूजा नहीं बल्कि धार्मिक अनुशासन का अभ्यास करना चाहते हैं
युवा वर्ग, जो धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझकर चरित्र निर्माण करना चाहते हैं
विचारशील नागरिक, जो धर्मनिरपेक्षता और सहअस्तित्व की भावना को समझना चाहते हैं
📈 पढ़ने से क्या लाभ मिलेगा?
धर्म के वास्तविक अर्थ और उसकी वैज्ञानिकता की समझ
जीवन में नैतिक संबल और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण का विकास
समाज में सहिष्णुता और सद्भाव को प्रोत्साहन
धर्म और आध्यात्मिकता को व्यावहारिक जीवन में अपनाने की प्रेरणा
पाप-पुण्य, सेवा, सत्य, समता आदि अवधारणाओं की स्पष्टता
✅ क्यों खरीदें यह पुस्तक?
धर्म के बारे में जो भ्रांतियाँ और सीमित धारणाएँ प्रचलित हैं, उन्हें यह पुस्तक तोड़ती है और एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है।
यह केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन का व्यावहारिक गाइड है।
₹150 जैसी सुलभ कीमत में एक समृद्ध और विचारशील अध्ययन प्राप्त होता है।
यह पुस्तक जीवन के हर क्षेत्र—चाहे वह व्यक्तिगत सुधार हो या सामाजिक चेतना—में धर्म के सही उपयोग की राह दिखाती है।
📚 "धर्मतत्त्व का दर्शन एवं मर्म" एक गहन चिंतन है, जो धर्म को पुनः उसकी गरिमा, प्रासंगिकता और व्यावहारिक उपयोगिता में प्रतिष्ठित करता है। यदि आप धर्म को आत्मज्ञान, समाजोत्थान और जीवन-संवर्धन के रूप में देखना चाहते हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए एक अनमोल निधि है।
Brand: Yug Nirman Yojna Trust |
Author: Pandit Sriram Sharma Acharya |
Language: Hindi |